गुरुनानक

1469 AD में गुरु नानक का जन्म तलवंडी (वर्तमान में लाहौर, पाकिस्तान) के हिन्दू परिवार के महाजन जाति  में  मेहता कालू (पिता ) और माता  तृप्ता देवी  के घर हुआ, गुरु नानक प्रथम सिख  गुरु बने और सिख धर्म की नींव रखी | (वर्तमान समय में इनका जन्मदिवस कार्तिक  माह की  15वीं पूर्णिमा को मनाया जाता है ) आध्यात्मिक झुकाव, दुनिया और उसके सिद्धांतों के बारे में जागरूकता और दिव्य विषयों के प्रति रुचि के बारे में टिप्पणियाँ उनके जीवन के प्रारम्भिक काल से मिलती हैं जहां प्रतीकों  और घटनाओं के बारे में  नैतिकता और सार्वभौमिकता की विवेचना की गई है | नानक के पूर्व जीवन के बारे में हमे जानकारी 1475 AD में मिलती है जब वह अपनी बहन (बीबी नानकी) के साथ सुल्तानपुर चले गए जहां बीबी नानकी का विवाह हुआ | 16 वर्ष की उम्र में नानक ने दौलत खान लोदी के शासन में कार्य करना शुरू कर दिया |  नानक में दिव्य गुणों की पहचान सबसे पहली बार स्थानीय जमींदार राज बुल्लर और नानक की बहन बीबी नानकी ने की | इसके बाद उन्हें यात्राओं के लिए प्रोत्साहित किया गया और इन्होनें अपने जीवन के 25 साल विभिन्न स्थानों  पर उपदेश दिये इस समय के दौरान बने भजनों  ने नानक की  सोच के अनुसार सामाजिक परेशानियाँ व उनके समाधानों के बारे में बताया | 30 वर्ष की उम्र में उन्हें एक सपना हुआ और वह अपने अनुष्ठान शुद्धि से नहीं लौटे उनके वस्त्र एक तालाब के किनारे तैरते पाये गए, तीन दिन तक गायब रहने के बाद वह फिर से सामने आए और शांत रहे तथा उन्होनें स्पष्ट किया कि उन्हें ईश्वर की  सभा में अमृत(जीवन का अमृत) दिया गया  और इन्हे ईश्वर के द्वारा उनकी सच्ची शिक्षाओं के प्रचार करने का आदेश दिया गया है |

भविष्य में नानक को गुरु माना  गया और उन्होनें सिख धर्म को जन्म दिया | सिख धर्म अपने बुनियादी  सिद्धांतों  में दयालुता, शांति और मानवीय सिद्धांतों को सिखाता है |

गुरुनानक ने यह पुष्टि कि है कि सभी मनुष्य एक समान हैं और वह गरीबों और दलितों को ज्यादा महत्व देते थे तथा महिलाओं की समानता पर प्रमुखता से बल देते  थे | वह महिलाओं को उच्च दर्जा देते थे और उन्हे श्रेष्ठ मानते थे | नानक को मुगल शासक बाबर के अत्याचारों और असभ्यता  की निंदा व उसके धर्मतंत्र के बारे में जिरह करने के लिए गिरफ्तार किया गया |

गुरु नानक ने पूरी तरह से प्रचलित पारंपरिक प्रथाओं को उलट दिया और बिना किसी शक के निस्वार्थ सेवा, ईश्वर की प्रशंसा और विश्वास पर बल दिया | इन्होनें वेदों को निरर्थक बताया और हिन्दू धर्म में जाति प्रथा की परंपरा पर प्रश्न उठाए | इन्होनें  लोगों को सिखाया कि  ईश्वर सब में बसते  हैं और उनकी सर्वज्ञता ,निराकार अनंत और बाहरी व सर्व सच की विद्यमान की स्वयं की प्रकृति के बारे में बताया |  इन्होनें आध्यात्मिक समानता, भाईचारा ,सामाजिक व राजनीतिक गुणों व अच्छाइयों के मंच की  स्थापना की |   

नानक ने बताया है कि  निस्वार्थ सेवा के द्वारा ईश्वर तक पहुंचा जा सकता है तथा ईश्वर की कृपा के बिना कुछ भी संभव नहीं है | इसलिए आदर्श रूप से ईश्वर ही  मुख्य कर्ता हैं | इसलिए हमें हमेशा पाखंड व झूठ  से बचना चाहिए क्यूंकि ये व्यर्थ के कार्यों को दिखाता है | |सिख धर्म के अनुसार नानक की शिक्षाएं तीन प्रकार से संपादित हैं –वंद चक्को (जरूरतमन्द की मदद करना व साझा करना ), कीरत करो (बिना धोखे के शुद्ध जीवन जीना ), नाम जपना ( खुशहाल जीवन व्यतीत करने के लिए ईश्वर को याद करना )

नानक ने ईश्वर की पूजा करने को व उन्हें प्रत्येक कर्म में याद रखने को महत्व दिया था | उन्होनें अपने मन का अनुसरण करने से बेहतर प्रबद्ध व्यक्ति का अनुसरण करने का सुझाव दिया | इनकी शिक्षाएं गुरु ग्रंथ साहिब(जिसमे 947 काव्य स्त्रोत व प्रार्थनाएँ हैं ) में संग्रहीत हैं और गहन विचारों के छन्द गुरुमुखी में दर्ज़ हैं जिसका ज्ञान आज तक भी अनश्वर है | पुजारियों व काजियों द्वारा गुमराह करने से व परस्पर विरोधी संदेश देने से लोगों की दुर्दशा देखने पर गुरु नानक ने लोगों को आध्यत्मिक सच का मार्गदर्शन करने के लिए पर्यटन शुरू किया | उन्होनें चारों दिशाओं में भाई मर्दाना(उनके सहयोगी ) के साथ हजारों किलोमीटर की पद यात्रा की और सभी धर्मों, जाति व संस्कृति के लोगों से मिले | उनकी यात्राओं को उदासीस कहा गया | जन्मसखी ( जीवन के बारे मे जानकारी व खाते)  और वर्स (छन्द) नानक के जीवन के प्रथम जीवन स्त्रोत है जिसे आज तक मान्यता प्राप्त है |गुरदास (गुरु ग्रंथ साहिब की नक्काशी ) | नानक के जीवन के बारे में पहले के जीवन स्त्रोत हैं जन्मसखी और वर्स अर्थात जीवन काल और छन्द| गुरु नानक के जीवन के विधर्म लेख की सही जानकारी देने के लिए भाई मनि सिंह द्वारा ज्ञान रत्नावली लिखी गई थी |

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